Friday, August 28, 2009

इक सब्ज़ा-ए-पामाल

कह गया बार्ड किसी नाम से पुकारो गुल को
उसकी हस्ती-ए-खुश्बू बता देगी कौन है वो
कँवल का क्या होगा कोई नहीं जानता है
बागबाँ ने कह दिया कँवल का कँवल जाने

गुल फरोश नज़रें गड़ाए बैठे हैं
ये कुम्ह्लाता हुआ फूल खरीदेगा कौन
कोई खुश्बू नहीं, कोई रंगत नहीं
ऎसी हालत पे किसी को भी हैरत नहीं
और क्यों होगी?

1 comment:

जगदीश त्रिपाठी said...

सही है सर
खरीदार तो सिर्फ और सिर्फ खुश्बू और रंगत से ही मतलब होता है।